03 June 2020

REPO RATE and REVERSE REPO RATE,

नमस्कार दोस्तों,
आज के इस ब्लॉग में हम बैंकिंग जगत के बारे में कुछ संकल्पना के बारे में आसान भाषा में रेपो रेट(repo rate), रिवर्स रेपो रेट(reverse repo rate)  के बारे में जानेंगे। इन सभी का भारत के अर्थव्यवस्था पर क्या असर होता हैं यह भी जानकारी लेंगे।
सबसे पहले हम रेपो रेट (repo rate) के बारे में जानकारी लेंगे।
१.रेपो रेट(repo rate) क्या हैं ?
रेपो रेट(repo rate) वह बैंक दर होता हैं जिसमें देश की रिजर्व या सेंट्रल बैंक व्यापारी या एनबीएफसी बैंको को अल्पकालीन कर्ज़ उपलब्ध कराता है। इस तरह का अल्पकालीन कर्ज लेने के लिए बैंको को सुरक्षा के तौर पर bond को गिरवी रखा जाता है।
उदाहरण के तौर पर हम इसको देखंगे ।
अगर कोई भी व्यापारी बैंक अपने देश के रिज़र्व बैंक से रेपो रेट (repo rate) से रुपए १०० करोड़ का कर्ज़ उठाना चाहता हो तो उस बैंक को 120 करोड़ के बोंड रिजर्व बैंक के पास गिरवी रखने पड़ते हैं। जब कोई व्यापारी बैंक यह कर्ज़ फिर से रिजर्व बैंक को वापस वापस करेगा तो वह बैंक ब्याज समेत 108 करोड़ रूपए ब्याज के साथ वापस करना पड़ता हैं। (यहां पर हम ब्याज दर 8%) और जो व्यापारी बैंक ने 120 करोड़ रूपए के बोंड गिरवी रखे होते हैं वह बोंड रिजर्व बैंक उस व्यापारी बैंक को वापस करता है।
2. रेपो रेट (repo rate) का अर्थव्यवस्था पर कैसा असर होता हैं?
 रेपो रेट (repo rate) की दर अगर कम रहती हैं तो बैंक भी अपने ग्राहकों को लोन कम दरो में उपलब्ध कराने में सक्षम हो जाता हैं और अगर यही रेपो रेट (repo rate) की दर ज्यादा हो तो बैंक अपने ग्राहकों को ज्यादा दरो से कर्ज़ उपलब्ध कराता है। लेकिन रेपो रेट (repo rate) का इस्तेमाल करके देश की रिजर्व बैंक महंगाई पर नियंत्रण प्राप्त करने के लिए करता हैं। 
उदाहरण से हम इसे आसान भाषा में समझाते हैं।
मान लीजिए की लोगों के पास अगर ज्यादा इनकम होने से अधिक राशी होती हैं तो इससे महंगाई बढ़न
 की संभावना होती हैं इसलिए रिजर्व बैंक ऐसे समय में रेपो रेट (repo rate) की दर बढ़ाती हैं ताकि व्यापारी बैंक को कर्ज़ महंगे दरो से मिले और व्यापारी बैंक भी अपने ग्राहकों को कर्ज़ महंगे दरो से उपलब्ध कराएं ताकि महंगाई नियंत्रण में रहें। और अगर लोगों के पास अगर कम पैसा हो तो रिजर्व बैंक रेपो रेट (repo rate)  की दर कम करके व्यापारी बैंक को कम दरों में कर्ज़ उपलब्ध कराता है ताकि बैंक अपने ग्राहकों को कम दरों में लोन उपलब्ध कराएं और बाज़ार में मंदी ना बने।
३. भारत में रेपो रेट (repo rate) का इतिहास।
अगर पिछले 10 से 12 साल का इतिहास हम देखें तो लगातार रेपो रेट (repo rate) कम होती नजर आई हैं । 31/07/2008 में यह दर 9.00% थी और अप्रैल 2020 से रेपो रेट (repo rate) 4.00% तक आरबीआई ने इसे कम किया है।
4. रिवर्स रेपो रेट (reverse repo rate) क्या हैं?
 रोज के लेन देन के बाद व्यापारी बैंको के पास जो रकम शेष रहती हैं वह रकम सारे व्यापारी बैंक आरबीआई के पास जमा करते हैं इससे बैंको को इस जमा पर आरबीआई ब्याज भी देता हैं, इसी दर को रिवर्स रेपो रेट  (reverse repo rate) कहते हैं। रिवर्स रेपो रेट (reverse repo rate) से आरबीआई महंगाई पर नियंत्रण रख सकता हैं। इसे उदाहरण से समझेंगे।
# मान लीजिए कि अगर आरबीआई रिवर्स रेपो रेट (reverse repo rate) की दर कम करती हैं तो बैंक यह रकम आरबीआई के पास जमा करने के बजाए कम दरों में अपने ग्राहकों को उपलब्ध कराता है। लेकिन अगर बाज़ार में ज्यादा नगद होने कारण महंगाई ना बढ़े इसलिए आरबीआई रिवर्स रेपो रेट (reverse repo rate) की दर बढ़ाता हैं ताकि व्यापारी बैंक अपने शेष रकम आरबीआई के पास रखता है और इस तरह से महंगाई पर नियंत्रण रखा जाता हैं।
5. भारत में रिवर्स रेपो रेट (reverse repo rate) का इतिहास।
भारत में पिछले १० से १२ सालों में रिवर्स रेपो रेट (reverse repo rate) की दर कम होती आ रही हैं। 2008 में यह 7.00% से अप्रैल 2020 तक यह 3.35% रह गई हैं।
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